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डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति चीन पर भारी पड़ता अमेरिकी दबाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति चीन पर भारी पड़ता अमेरिकी दबाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपनी आक्रामक आर्थिक नीतियों के तहत चीन सहित कई देशों पर पारस्परिक टैरिफ (reciprocal tariffs) लागू किए हैं। शनिवार को ट्रंप ने दावा किया कि इन टैरिफों से चीन को अमेरिका की तुलना में कहीं अधिक नुकसान हुआ है। उनके इस बयान के एक दिन पहले ही अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई, जिसने वैश्विक मंदी की आशंकाओं को जन्म दिया। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, "चीन को हमसे कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है, यह कोई तुलना ही नहीं है। चीन और कई अन्य देशों ने हमारे साथ असहनीय रूप से बुरा व्यवहार किया है। हम अब तक मूर्ख और असहाय 'व्हिपिंग पोस्ट' रहे हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।" इस लेख में हम ट्रंप की टैरिफ नीति, इसके चीन और अमेरिका पर प्रभाव, और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके असर को विस्तार से समझेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति चीन पर भारी


ट्रंप की टैरिफ नीति का आधार

डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति उनकी "अमेरिका फर्स्ट" सोच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। उनका मानना है कि अमेरिका को लंबे समय से व्यापारिक साझेदारों, खासकर चीन, ने नुकसान पहुंचाया है। ट्रंप प्रशासन ने इस साल चीन से आयातित वस्तुओं पर अतिरिक्त 34% टैरिफ लगाया, जिससे कुल टैरिफ 54% तक पहुंच गया। इसके अलावा, कनाडा, मैक्सिको, यूरोपीय संघ और अन्य देशों से आने वाले सामानों पर भी भारी शुल्क लगाए गए हैं। ट्रंप का दावा है कि ये नीतियां अमेरिकी नौकरियों और व्यवसायों को वापस लाने में मदद करेंगी। उन्होंने कहा, "हम नौकरियां और व्यवसाय पहले की तरह वापस ला रहे हैं। पहले ही पांच ट्रिलियन डॉलर से अधिक का निवेश हो चुका है और यह तेजी से बढ़ रहा है। यह एक आर्थिक क्रांति है, और हम जीतेंगे।"



चीन पर टैरिफ का प्रभाव

चीन, जिसे "दुनिया की फैक्ट्री" कहा जाता है, ट्रंप के टैरिफों से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। 54% तक पहुंच चुके टैरिफ के कारण चीनी सामानों की कीमत अमेरिकी बाजार में बढ़ गई है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हुई है। चीनी निर्यातकों को न केवल अमेरिकी बाजार में मांग में कमी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि उनकी आपूर्ति श्रृंखला भी प्रभावित हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे चीन में छंटनी बढ़ सकती है, आर्थिक विकास दर गिर सकती है, और सरकार को अपने 5% जीडीपी लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन पैकेज लाने पड़ सकते हैं।


चीन के विदेश मंत्रालय ने इन टैरिफों की कड़ी निंदा की है। मंत्रालय ने कहा, "हम अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा के लिए दृढ़ कदम उठाते रहेंगे। अमेरिका को टैरिफ को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना बंद करना चाहिए और चीनी लोगों के वैध विकास अधिकारों को कमजोर करने से बचना चाहिए।" चीन ने जवाबी कार्रवाई के तौर पर अमेरिकी सामानों पर भी टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की है, जिससे यह व्यापार युद्ध और गहरा सकता है।



अमेरिका पर प्रभाव: दावे और वास्तविकता

ट्रंप का दावा है कि उनकी नीतियों से अमेरिका को फायदा हो रहा है और यह देश एक "आर्थिक क्रांति" की ओर बढ़ रहा है। उनके अनुसार, इन टैरिफों से अमेरिकी कंपनियां घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होंगी, जिससे नौकरियां पैदा होंगी। हालांकि, वास्तविकता इतनी सरल नहीं है। अमेरिकी शेयर बाजार में हालिया गिरावट इस बात का संकेत है कि निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ रही है। टैरिफ के कारण आयातित सामानों की कीमतें बढ़ रही हैं, जिससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ पड़ सकता है।


उदाहरण के लिए, कनाडा और मैक्सिको से आने वाली कारों और ऑटो पार्ट्स पर 25% टैरिफ से वाहनों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर न केवल खरीदारों पर, बल्कि ऑटो उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों पर भी पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि 2018 में स्टील पर लगाए गए 25% टैरिफ के बावजूद अमेरिकी स्टील उद्योग में रोजगार में कोई खास वृद्धि नहीं हुई थी। इससे ट्रंप के दावों पर सवाल उठते हैं कि क्या ये नीतियां वास्तव में अमेरिकी श्रमिकों के लिए फायदेमंद हैं।



वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

ट्रंप की टैरिफ नीति का असर केवल अमेरिका और चीन तक सीमित नहीं है; यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है। अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट के बाद यूरोप और एशिया के बाजारों में भी हलचल देखी गई। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, जो पहले से ही कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध से प्रभावित थी, अब और दबाव में आ सकती है। कई देशों ने अमेरिका के इस कदम का विरोध किया है और जवाबी टैरिफ लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।


चीन ने पहले ही संकेत दिए हैं कि वह अमेरिका को दुर्लभ पृथ्वी धातुओं (rare earth metals) के निर्यात पर नियंत्रण बढ़ा सकता है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। अगर ऐसा हुआ, तो यह वैश्विक तकनीकी उद्योग के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है। दूसरी ओर, भारत जैसे देशों के लिए यह एक अवसर भी हो सकता है। ट्रंप के टैरिफों से प्रभावित चीनी बाजार का विकल्प बनकर भारत अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।


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भारत के लिए संभावनाएं और चुनौतियां

भारत के लिए ट्रंप की टैरिफ नीति दोहरी तलवार की तरह है। एक ओर, यह भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में चीनी उत्पादों की जगह लेने का मौका देती है। इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में भारत अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। दूसरी ओर, अगर अमेरिका भारत पर भी ऊंचे टैरिफ लगाता है, तो भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है। ट्रंप ने पहले भारत को "उच्च टैरिफ वाला देश" कहकर आलोचना की थी, जिससे भविष्य में तनाव की आशंका बनी हुई है। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच अच्छे संबंध इस स्थिति को संभालने में मदद कर सकते हैं।


डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति एक जोखिम भरा दांव है, जिसके परिणाम अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। जहां ट्रंप इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए एक "ऐतिहासिक जीत" मानते हैं, वहीं आलोचकों का कहना है कि यह वैश्विक व्यापार युद्ध को बढ़ावा दे सकता है और मंदी का कारण बन सकता है। चीन पर इसका असर निश्चित रूप से गहरा है, लेकिन अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रहेगा। इस नीति का असली प्रभाव आने वाले महीनों में सामने आएगा, जब यह स्पष्ट होगा कि क्या ट्रंप वास्तव में "अमेरिका को फिर से महान" बना पाएंगे या यह एक महंगा प्रयोग साबित होगा। भारत जैसे देशों के लिए यह एक संतुलन बनाए रखने का समय है, ताकि वे इस व्यापार युद्ध के अवसरों का लाभ उठा सकें और चुनौतियों से बच सकें।

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